सुर्ख़ लहू से रची आज़ादी । सुर्ख़ लहू से रची आज़ादी ।
छुआ आपने अन्तर्मन् को.......समझा तब जीवनदर्शन को छुआ आपने अन्तर्मन् को.......समझा तब जीवनदर्शन को
मेरी बेरुख़ी और ओढ़ी हुई व्यस्तता के बीचउपेक्षा की यंत्रणा भरी धीमी -- धीमी मौत मर रहे थे. मेरी बेरुख़ी और ओढ़ी हुई व्यस्तता के बीचउपेक्षा की यंत्रणा भरी धीमी -- धीमी मौत म...
एक हाथ में बोल एक हाथ में थैला चल पड़ा हूँ खोजने को मैं रास्ता एक हाथ में बोल एक हाथ में थैला चल पड़ा हूँ खोजने को मैं रास्ता
जाने कितनी सीता होंगी जाने कितने स्वप्न जलेंगे जाने कितनी सीता होंगी जाने कितने स्वप्न जलेंगे
जो तैर कर नदी - दूरी की आने को व्याकुल पास तुम्हारे। जो तैर कर नदी - दूरी की आने को व्याकुल पास तुम्हारे।